बड़ी कमबख्त है जिंदगी, जो चैन से जीने नहीं देती. खींच ले जाती है सड़कों पर,...शोर शोर शोर। स्कूली पोशाकों में थरथराते हुये बच्चे....कंधे पर कितबों का बोझ...क्या इन किताबों के सहारे भविष्य में जिंदगी का बोझ उठा पाएंगे....या फिर रेंगेंगी इनकी जिंदगी भी, करोड़ों डिग्रियोंधारियों की तरह। ठेलम ठेल में फंसी जिंदगी धक्के खाती है, सभी जगह तो कतार लगे हैं....माथे से चूता पसीना...फटे हुये जूतों में घुसे हुये पैर....न चाहते हुये भी घिसती है जिंदगी...नक्काशी करती है अपने अंदाज में अनवरत...कई बार उसकी गर्दन पकड़कर पूछ चुका हूं- तू चाहती क्या है...मुस्करा सवाल के जबाब में सवाल करती है...तू मुझसे क्या चाहता है...तुने खुद तो धकेल रखा है मुझे लोगों की भीड़ में, पिचलने और कुचलने के लिए...उठा कोई सपनीली सी किताब और खो जा शब्दों के संसार में......या तराश अपने लिए कोई सपनों की परी और डूब जा उसकी अतल गहराइयों में। दूसरों के शब्द रोकते तो हैं, लेकिन उस ताप में तपाते नहीं है,जिसकी आदत पड़ चुकी है जिंदगी के साथ...सपनों के परी के बदन पर भी कई बार हाथ थिरके हैं, लेकिन खुरदरी जिंदगी के सामने वह भी फिकी लगती है...बेचैन कर देने वाले सवाल खड़ी करती है जिंदगी और उन सवालों से कंचों की गोटियों की तरह खेलता हूं...ठन, ठन, ठन। नहीं चालिये शोहरत की कालीन, नहीं चालिये समृद्धि का चादर...जिंदगी लिपटी रह मेरे गले से बददुआ बनकर...नोचती खरोचती रह मेरे वजूद को...इसके चुभते हुये नाखून मेरे जख्मों को सुकून पहुंचाती है...और कुछ नये जख्म भी दे जाती हैं...इन जख्मों को मैं सहेजता हूं, अनमोल निशानी समझकर...
Monday, January 19, 2009
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1 comment:
LORD BUDHA ne kaha hai "THE BIRTH IS SORROW" Jab jindagi hai to kambakht bhi rahega. Jindagi ke likhate chale jaye...........
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